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कक्षा - 12 पुस्तक- आरोह भाग-2 पाठ - कैमरे में बंद अपाहिज लेखक - श्री रघुवीर सहाय प्रतिपाद्य, सार , प्रश्नोत्तर Class- 12 BOOK- AAROH PART-2 LESSON - kaimare mein band apaahij lekhak - Shree Raghuveer Sahaay pratipaady, saar , prashnottar

कक्षा -  12 पुस्तक- आरोह  भाग-2 पाठ -    कैमरे में बंद अपाहिज  लेखक - श्री रघुवीर सहाय प्रतिपाद्य,  सार , प्रश्नोत्तर  Class- 12 BOOK- AAROH...


कक्षा -  12
पुस्तक- आरोह  भाग-2
पाठ -    कैमरे में बंद अपाहिज 
लेखक - श्री रघुवीर सहाय
प्रतिपाद्य,  सार , प्रश्नोत्तर 
Class- 12
BOOK- AAROH  PART-2
LESSON -    kaimare mein band apaahij 
lekhak - Shree Raghuveer Sahaay
pratipaady,  saar , prashnottar 

www.rajeshrastravadi.in

कविता का प्रतिपाद्य :--

'कैमरे में बंद अपाहिज' कविता को 'लोग भूल गए हैं' काव्य संग्रह से लिया गया है। इस कविता में कवि ने शारीरिक चुनौती को झेल रहे व्यक्ति की पीड़ा के साथ-साथ दूरसंचार माध्यमों के चरित्र को भी रेखांकित किया है। किसी की पीडा को दर्शक वर्ग तक पहुंचाने वाले व्यक्ति को उस पीड़ा के प्रति स्वयं संवेदनशील होने और दूसरों को संवेदनशील बनाने का दावेदार होना चाहिए। आज विडवना यह है कि जब पीड़ा को परदे पर उभारने का प्रयास किया जाता है तो कारोबारी दबाव के तहत प्रस्तुतकर्ता का रवैया संवेदनहीन हो जाता है। यह कविता टेलीविजन स्टूडियों के भीतर की दुनिया को समाज के सामने प्रकट करती है। साथ ही उन सभी व्यक्तियों की तरफ इशारा करती है जो दुख-दर्द यातना-वेदना आदि को बेचना चाहते है।

कविता का सार:--

इस कविता में दूरदर्शन के संचालक स्वयं को शक्तिशाली बताते हैं तथा दूसरे को कमजोर मानते हैं। वे विकलांग से पूछते हैं कि क्या आप अपाहिज हैं। आप अपाहिज क्यों हैं? आपको इससे क्या दुख होता है? ऊपर से वह दुख भी जल्दी बताइए क्योंकि समय नहीं है। प्रश्नकर्ता इन सभी प्रश्नों के उत्तर अपने हिसाब से चाहता है। इतने प्रश्नों से विकलांग घबरा जाता है। प्रश्नकर्ता अपने कार्यक्रम को रोचक बनाने के लिए उसे रुलाने की कोशिश करता है ताकि दर्शकों में करुणा का भाव जाग सके। इसी से उसका उद्देश्य पूरा होगा। वह इसे सामाजिक उद्देश्य कहता है, परंतु 'परदे पर वक्त की कीमत है' वाक्य से उसके व्यापार की पोल खुल जाती है।
व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न:--

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सप्रसंग व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

(1) 
हम दूरदर्शन पर बोलेंगे
हम समर्थ शक्तिवान
हम एक दुर्बल को लाएँगे
एक बंद कमरे में 
उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं? 
तो आप क्यों अपाहिज हैं? 
आपका अपाहिजपन तो दुख देता होगा देता है?
(कैमरा दिखाओ इसे बड़ा-बड़ा) 
हाँ तो बताइए आपका दुख क्या है 
जल्दी बताइए वह दुख बताइए 
बता नहीं पाएगा।
शब्दार्थ : समर्थ-सक्षम । शक्तिवान-ताकतवर। दुर्बल-कमजोर। बंद कमरे में-टी.वी. स्टूडियो में। अपाहिज- अपंग, विकलांग। दुख-कष्ट

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह, भाग-2' में संकलित 'कैमरे में बंद अपाहिज' शीर्षक कविता से लिया गया है। इस कविता के रचयिता रघुवीर सहाय हैं। इस कविता में कवि ने मीडिया की संवेदनहीनता का चित्रण किया है। कवि का मानना है कि मीडिया वाले दूसरे के दुख को भी व्यापार का माध्यम बना लेते हैं।

व्याख्या: कवि मीडिया के लोगों की मानसिकता का वर्णन करता है। मीडिया के लोग स्वयं को समर्थ व शक्तिशाली मानते हैं। वे ही दूरदर्शन पर बोलते हैं। अब वे एक बंद कमरे अर्थात स्टूडियो में एक कमज़ोर व्यक्ति को बुलाएँगे तथा उससे प्रश्न पूछेंगे। क्या आप अपाहिज हैं? यदि हैं तो आप क्यों अपाहिज हैं? क्या आपका अपाहिजपन आपको दुख देता है? ये प्रश्न इतने बेतुके हैं कि अपाहिज इनका उत्तर नहीं दे पाएगा, जिसकी वजह से वह चुप रहेगा। इस बीच प्रश्नकर्ता कैमरे वाले को निर्देश देता है कि इसको (अपाहिज को) स्क्रीन पर बड़ा-बड़ा दिखाओ। फिर उससे प्रश्न पूछा जाएगा कि आपको कष्ट क्या है? अपने दुख को जल्दी बताइए। अपाहिज इन प्रश्नों का उत्तर नहीं देगा क्योंकि ये प्रश्न उसका मज़ाक उड़ाते हैं।

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(2) 
सोचिए
बताइए
आपको अपाहिज होकर कैसा लगता है
कैसा
यानी कैसा लगता है
(हम खुद इशारे से बताएँगे कि क्या ऐसा?)
सोचिए
बताइए
थोड़ी कोशिश करिए
(यह अवसर खो देंगे?)
आप जानते हैं कि कार्यक्रम रोचक बनाने के वास्ते हम पूछ-पूछकर उसको रुला देंगे
इंतजार करते हैं आप भी उसके रो पड़ने का करते हैं?
(यह प्रश्न पूछा नहीं जाएगा)

शब्दार्थ :- रोचक-दिलचस्प। वास्ते-के लिए। इंतजार-प्रतीक्षा।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह, भाग-2' संकलित 'कैमरे में बंद अपाहिज' शीर्षक कविता से लिया गया है। एम कविता के रचयिता रघुवीर सहाय हैं। इस कविता में कवि ने मीडिया की संवेदनहीनता का चित्रण किया है। कवि का मानना है कि मीडिया के लोग किसी-न-किसी तरह दूसरे के दुख को भी व्यापार का माध्यम बना लेते हैं।

व्याख्या : इस काव्यांश में कवि कहता है कि मीडिया के लोग अपाहिज से बेतुके सवाल करते हैं। वे अपाहिज से पूछते हैं कि-अपाहिज होकर आपको कैसा लगता है ? यह बात सोचकर बताइए। यदि वह नहीं बता पाता तो वे स्वयं ही उत्तर देने की कोशिश करते हैं। वे इशारे करके बताते हैं कि क्या उन्हें ऐसा महसूस होता है। थोड़ा सोचकर और कोशिश करके बताइए। यदि आप इस समय नहीं बता पाएँगे तो सुनहरा अवसर खो देंगे। अपाहिज के पास इससे बढ़िया मौका नहीं हो सकता कि वह अपनी पीड़ा समाज के सामने रख सके।
मीडिया वाले कहते हैं कि हमारा लक्ष्य अपने कार्यक्रम को रोचक बनाना है और इसके लिए हम ऐसे प्रश्न पूछेंगे कि वह रोने लगेगा। वे समाज पर भी कटाक्ष करते हैं कि वे भी उसके रोने का इंतजार करते हैं। या यह प्रश्न दर्शकों से नहीं पूछेगा।
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(3)

फिर हम परदे पर दिखलाएँगे
फूली हुई आँख की एक बड़ी तसवीर
बहुत बड़ी तसवीर
और उसके होंठों पर एक कसमसाहट भी (आशा है आप उसे उसकी अपंगता की पीड़ा मानेंगे)
एक और कोशिश
दर्शक
धीरज रखिए
देखिए
हमें दोनों एक संग रुलाने हैं
आप और वह दोनों
(कैमरा
बस करो
नहीं हुआ
रहने दो
परदे पर वक्त की कीमत है)
अब मुसकुराएँगे हम
आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम (बस थोड़ी ही कसर रह गई) 
धन्यवाद!
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शब्दार्थ: कसमसाहट- बेचैनी। अपंगता-अपाहिजपन। धीरज- धैर्य। परदे पर-टी०वी० पर। वक्त- समय। कसर- कमी।
प्रसंग:- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह, भाग-2' में संकलित 'कैमरे में बंद अपाहिज' शीर्षक कविता से लिया गया है। इस कविता के रचयिता रघुवीर सहाय हैं। इस कविता में कवि ने मीडिया की संवेदनहीनता का चित्रण किया है। उसने यह बताने का प्रयत्न किया है कि मीडिया के लोग किस प्रकार से दूसरे के दुख को भी व्यापार का माध्यम बना लेते हैं।

व्याख्या:- कवि कहता है कि दूरदर्शन वाले अपाहिज का मानसिक शोषण करते हैं। वे उसकी फूली हुई आँखों की तसवीर को बड़ा करके परदे पर दिखाएँगे। वे उसके होंठों पर होने वाली बेचैनी और कुछ न बोल पाने की तड़प को भी दिखाएँगे। ऐसा करके वे दर्शकों को उसकी पीड़ा बताने की कोशिश करेंगे। वे कोशिश करते हैं कि वह रोने लगे। साक्षात्कार लेने वाले दर्शकों को धैर्य धारण करने के लिए कहते हैं। वे दर्शकों व अपाहिज दोनों को एक साथ रुलाने की कोशिश करते हैं। तभी वे निर्देश देते हैं कि अब कैमरा बंद कर दो। यदि अपाहिज अपना दर्द पूर्णतः व्यक्त न कर पाया तो कोई बात नहीं। परदे का समय बहुत महँगा है। इस कार्यक्रम के बंद होते ही दूरदर्शन में कार्यरत सभी लोग मुस्कराते हैं और यह घोषणा करते हैं कि आप सभी दर्शक सामाजिक उद्देश्य से भरपूर कार्यक्रम देख रहे थे। इसमें थोड़ी-सी कमी यह रह गई कि हम आप दोनों को एक साथ रुला नहीं पाए। फिर भी यह कार्यक्रम देखने के लिए आप सबका धन्यवाद!
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कविता के साथ:--
प्रश्न-1 कविता में कुछ पंक्तियाँ कोष्ठकों में रखी गई हैं। आपकी समझ से इसका क्या औचित्य है ?

उत्तर- कवि ने कुछ पंक्तियाँ कोष्ठकों में रखी हैं। ये कोष्ठक कवि के मुख्य भाव को व्यक्त करते हैं। इनमें लिखी पंक्तियों के माध्यम से अलग- अलग लोगों को संबोधित किया है। ये एक तरह से संचालन करने के लिए हैं, जैसे--

कैमरा मैन के लिए :-

कैमरा दिखाओ इसे बड़ा बड़ा

कैमरा...... की कीमत है।

दर्शकों के लिए :-

हम खुद इशारे से बताएँगे क्या ऐसा?

यह प्रश्न पूछा नहो जाएगा

अपंग व्यक्ति को-

यह अवसर खो देंगे?

बस थोडी कसर रह गई।

कोष्ठक कविता के मुख्य उद्देश्य को अभिव्यक्त करने में सहायक होते हैं।

प्रश्न-2 कैमरे में बंद अपाहिज' करुणा के मुखौटे में छिपी क्रूरता की कविता है-विचार करके लिखिए। 

उत्तर:-- यह कविता अपनेपन को भावना में छिपी क्रूरता को व्यक्त करती है। सामाजिक उद्देश्यों के नाम पर अपाहिज की पोड़ा को जनता तक पहुंचाया जाता है। यह कार्य ऊपर से करुण भाव को दर्शाता है परंतु इसका वास्तविक उद्देश्य कुछ और ही होता है। संचालक अपाहिज की अपंगता बेचना चाहता है। वह एक रोचक कार्यक्रम बचना चाहता है ताकि उसका कार्यक्रम जनता में लोकप्रिय हो सके। उसे अपंग की पीड़ा से कोई लेना-देना नहीं है। यह कविता यह बताती है कि दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले इस प्रकार के अधिकांश कार्यक्रम कारोबारी दबाव के कारण संवेदनशील होने का दिखावा करते हैं। इस तरह दिखावटी अपनेपन की भावना क्रूरता की सीमा तक पहुँच जाती है।

प्रश्न-3 'हम समर्थ शक्तिवान' और 'हम एक दुर्बल को लाएंगे' पक्ति के माध्यम से कवि ने क्या व्यंग्य किया है?
अथवा
कैमरे में बंद अपाहिज कविता में 'हम समर्थ शक्तिवान-हम एक दुर्बल को लाएँगे' पंक्तियों के माध्यम से कवि ने क्या कहना चाहा है?

उत्तर:- 'हम समर्थ शक्तिवान' पक्ति के माध्यम से मीडिया की ताकत व कार्यक्रम संचालकों की मानसिकता का पता चलता है। मीडियाकर्मी या मीडिया संचालक अपने प्रचार-प्रसार की ताकत के कारण किसी का भी मजाक बना सकते हैं तथा किसी को भी नीचे गिरा सकते हैं। चैनल के मुनाफ़े के लिए संचालक किसी की करुणा को भी बेच सकते हैं। कार्यक्रम का निर्माण व प्रस्तुति संचालकों की मर्जी से होती है।
'हम एक दुर्बल को लाएँगे' पंक्ति में लाचारी का भाव है। मीडिया के सामने आने वाला व्यक्ति कमज़ोर होता है। मीडिया के अटपटे प्रश्नों से संतुलित व्यक्ति भी विचलित हो जाता है। अपंग या कमज़ोर व्यक्ति तो रोने लगता है। यह सब कुछ उसे कार्यक्रम संचालक की इच्छानुसार करना होता है।
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प्रश्न 4. यदि शारीरिक रूप से चुनौती का सामना कर रहे व्यक्ति और वर्शक दोनों एक साथ रोने लगेंगे, तो उससे प्रश्नकर्ता का कौन-सा उद्देश्य पूरा होगा?

उत्तर- कार्यक्रम संचालक व निर्माता का एक ही उद्देश्य होता है अपने कार्यक्रम को लोकप्रिय बनाना ताकि वह धन व प्रसिद्धि प्राप्त कर सके। इस उपलब्धि के लिए उसे चाहे कोई भी तरीका क्यों न अपनाना पड़े, वह अपनाता है। कविता के आधार पर यदि शारीरिक रूप से चुनौती का सामना कर रहे व्यक्ति और दर्शक दोनों एक साथ रोने लगेंगे तो इससे सहानुभूति बटोरने का संचालक का उद्देश्य पूरा हो जाता है। समाज उसे अपना हितैषी समझने लगता है तथा इससे उसे धन व यश मिलता है।

प्रश्न 5. 'परदे पर वक्त की कीमत है' कहकर कवि ने पूरे साक्षात्कार के प्रति अपना नजरिया किस रूप में रखा है?

उत्तर - इस पक्ति के माध्यम से कवि ने पूरे साक्षात्कार के प्रति व्यावसायिक नजरिया प्रस्तुत किया है। परदे पर जो कार्यक्रम दिखाया जाता है. उसकी कीमत समय के अनुसार होती है। दूरदर्शन व कार्यक्रम संचालक को जनता के हित या पीड़ा से कोई मतलब नहीं होता। वे अपने कार्यक्रम को कम-से-कम समय में लोकप्रिय करना चाहते हैं। अपाहिज की पीड़ा को कम करने की बजाय अधिक करके दिखाया जाता है ताकि करुणा को 'नकदी' में बदला जा सके। संचालकों की सहानुभूति भी बनावटी होती है।

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