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कक्षा -12 पाठ- पतंग कविता का सार , शब्दार्थ, प्रश्नोत्तर, पदों की व्याख्या CLASS 12 LESSON-11

कक्षा -12  पाठ- पतंग  लेखक- आलोक धन्वा कविता का सार  शब्दार्थ  प्रश्नोत्तर, पदों की व्याख्या CLASS 12 LESSON  - PTANG                       ...


कक्षा -12 

पाठ- पतंग 

लेखक- आलोक धन्वा

कविता का सार 

शब्दार्थ  प्रश्नोत्तर, पदों की व्याख्या

CLASS 12

LESSON  - PTANG 

                           पाठ- पतंग

www.rajeshrastravadi.in


कविता का प्रतिपाद्य एवं सार:--

प्रतिपाद्य'पतंग' कविता कवि के 'दुनिया रोज बनती है' व्यंग्य संग्रह से ली गई है। इस कविता में कवि ने बालसुलभ इच्छाओं

और उमंगों का सुंदर चित्रण किया है। बाल क्रियाकलापों एवं प्रकृति में आए परिवर्तन को अभिव्यक्त करने के लिए इन्होंने सुंदर बिंबों का उपयोग किया है। पतंग बच्चों की उमंगों का रंग-बिरंगा सपना है जिसके जरिये वे आसमान की ऊँचाइयों को छूना चाहते हैं तथा उसके पार जाना चाहते हैं। 

यह कविता बच्चों को एक ऐसी दुनिया में ले जाती है जहाँ शरद ऋतु का चमकीला इशारा है, जहाँ तितलियों की रंगीन दुनिया दिशाओं के मृदंग बजते हैं, जहाँ छतों के खतरनाक कोने से गिरने का भय है तो दूसरी ओर भय पर विजय पाते बच्चे हैं जो गिर गिरकर सँभलते हैं तथा पृथ्वी का हर कोना खुद-ब-खुद उनके पास आ जाता है। वे हर बार नई-नई पतंगों को सबसे ऊँचा बढ़ते का हौसला लिए अँधेरे के बाद उजाले की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

सार :-- कवि कहता है कि भादों के बरसते मौसम के बाद शरद ऋतु आ गई। इस मौसम में चमकीली धूप थी तथा उमंग का माहौल था। बच्चे पतंग उड़ाने के लिए इकट्ठे हो गए। मौसम साफ़ हो गया तथा आकाश मुलायम हो गया। बच्चे पतंगें उड़ाने लगे तथ सीटियाँ व किलकारियाँ मारने लगे। बच्चे भागते हुए ऐसे लगते हैं मानो उनके शरीर में कपास लगे हों। उनके कोमल नरम शरीर पर चोट व खरोंच अधिक असर नहीं डालती। उनके पैरों में बेचैनी होती है जिसके कारण वे सारी धरती को नापना चाहते हैं। वे मकान की छतों पर बेसुध होकर दौड़ते हैं मानो छतें नरम हों। खेलते हुए उनका शरीर रोमांचित हो जाता है। इस रोमांच में वे गिरने से बच जाते हैं। बच्चे पतंग के साथ उड़ते-से लगते हैं। कभी-कभी वे छतों के खतरनाक किनारों से गिरकर भी बच जाते हैं। इसके बाद इनमें साहस तथा आत्मविश्वास बढ़ जाता है।

व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नः--

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निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सप्रसंग व्याख्या कीजिए।

(1 )

सबसे तेज़ बौछारें गयीं भादो गया 

सवेरा हुआ

खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा 

शरद आया पुलों को पार करते हुए

अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए 

घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से

चमकीले इशारों से बुलाते हुए 

पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को 

चमकीले इशारों से बुलाते हुए और 

आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए

कि पतंग ऊपर उठ सके-

दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज़ उड़ सके 

दुनिया का सबसे पतला कागज उड़ सके-

बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके-

कि शुरू हो सके सीटियों, किलकारियों और 

तितलियों की इतनी नाजुक दुनिया।

शब्दार्थ - भादो-भादों मास, अँधेरा। शरद-शरद ऋतु, उजाला। झुंड-समूह। इशारों से- संकेतों से। मुलायम- कोमल। रंगीन- रंग बिरंगी । बाँस-एक प्रकार की लकड़ी। नाजुक- कोमल। किलकारी-खुशी में चिल्लाना।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह, भाग-2' में संकलित कविता 'पतंग' से उधृत है। इस कविता के रचयिता आलोक धन्वा हैं। प्रस्तुत कविता में कवि ने मौसम के साथ प्रकृति में आने वाले परिवर्तनों व बालमन की सुलभ चेष्टाओं का सजीव चित्रण किया है।

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व्याख्याकवि कहता है कि बरसात के मौसम में जो तेज़ बौछारें पड़ती थीं, वे समाप्त हो गईं। तेज़ बौछारों और भादों माह की विदाई के साथ-साथ ही शरद ऋतु का आगमन हुआ। अब शरद का प्रकाश फैल गया है। इस समय सवेरे उगने वाले सूरज में खरगोश की आँखों जैसी लालिमा होती है। कवि शरद का मानवीकरण करते हुए कहता है कि वह अपनी नयी चमकीली साइकिल को तेज गति से चलाते हुए और ज़ोर-ज़ोर से घंटी बजाते हुए पुलों को पार करते हुए आ रहा है। वह अपने चमकीले इशारों से पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को बुला रहा है। दूसरे शब्दों में, कवि कहना चाहता है कि शरद ऋतु के आगमन से उत्साह, उमंग का माहौल बन जाता है।

कवि कहता है कि शरद ने आकाश को मुलायम कर दिया है ताकि पतंग ऊपर उड़ सके। वह ऐसा माहौल बनाता है कि दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज़ उड़ सके। यानी बच्चे दुनिया के सबसे पतले कागज़ व बाँस की सबसे पतली कमानी से बनी पतंग उड़ा सकें। इन पतंगों को उड़ता देखकर बच्चे सीटियाँ, किलकारियाँ मारने लगते हैं। इस ऋतु में रंग-बिरंगी तितलियाँ भी दिखाई देने लगती है। बच्चें भी तितलियों की भांति कोमल व नाजुक होते हैं।

( 2)

जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास

पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास 

जब वे दौड़ते हैं बेसुध  

छतों को भी नरम बनाते हुए

दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए 

जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं 

डाल की तरह लचीले वेग से अकसर 

छतों के खतरनाक किनारों तक-

उस समय गिरने से बचाता है उन्हें 

सिर्फ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत 

पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज एक धागे 

के सहारे।

शब्दार्थः- कपास-इस शब्द का प्रयोग कोमल व नरम अनुभूति के लिए हुआ है। बेसुध -मस्त। मृदंग- ढोल जैसा वाद्य यंत्र। पेंग भरना-झूला झूलना। डाल-शाखा। लचीला वेग- लचीली गति। अकसर- प्रायः। रोमांचित - पुलकित । महज- केवल, सिर्फ। 

प्रसंग:-- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह, भाग-2' में संकलित कविता 'पतंग' से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता आलोक धन्या हैं। प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति में आने वाले परिवर्तनों व बालमन की सुलभ चेष्टाओं का सजीव चित्रण किया है। 

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व्याख्या:- कवि कहता है कि बच्चों का शरीर कोमल होता है। वे ऐसे लगते हैं मानो वे कपास की नरमी, लोच आदि लेकर ही पैदा हुए हों। उनकी कोमलता को स्पर्श करने के लिए धरती भी लालायित रहती है। वह उनके बेचैन पैरों के पास आती है जब वे मरन होकर दौड़ते हैं। दौड़ते समय उन्हें मकान की छतें भी कठोर नहीं लगतीं। उनके पैरों से छतें भी नरम हो जाती हैं। उनकी पदचापों में सारी दिशाओं में मृदंग जैसा मीठा स्वर उत्पन्न होता है। वे पतंग उड़ाते हुए इधर से उधर झूले की पेंग की तरह आगे-पीछे आते-जाते हैं। उनके शरीर में डाली की तरह लचीलापन होता है। पतंग उड़ाते समय वे छतों के खतरनाक किनारों तक आ जाते हैं। यहाँ उन कोई बचाने नहीं आता, अपितु उनके शरीर का रोमांच ही उन्हें बचाता है। वे खेल के रोमांच के सहारे खतरनाक जगहों पर भी पहुंच जाते हैं। इस समय उनका सारा ध्यान पतंग की डोर के सहारे, उसकी उड़ान व ऊँचाई पर ही केंद्रित रहता है। ऐसा लगता है मानो पतंग की ऊँचाइयों ने ही उन्हें केवल डोर के सहारे थाम लिया हो।

(3)

पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं

अपने रंध्रों के सहारे 

अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से 

और बच जाते हैं तब तो 

और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं

पृथ्वी और भी तेज़ घूमती हुई आती है

उनके बेचैन पैरों के पास।

शब्दार्थ :- रंध्रों-सुराखों। सुनहले सूरज-सुनहरा सूर्य।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह, भाग-2' में संकलित कविता 'पतंग' से उधृत है। इस कविता के रचयिता आलोक धन्वा हैं। इस कविता में कवि ने प्रकृति में आने वाले परिवर्तनों व बालमन की सुलभ चेष्टाओं का सजीव विचार किया व्याख्या-कवि कहता है कि आकाश में अपनी पतंगों को उड़ते देखकर बच्चों के मन भी आकाश में उड़ रहे हैं। उनके शरीर के रोएँ भी संगीत उत्पन्न कर रहे हैं तथा वे भी आकाश में उड़ रहे हैं। कभी-कभार वे छतों के किनारों से गिर जाते हैं, परंतु अपने लचीलेपन के कारण वे बच जाते हैं। उस समय उनके मन का भय समाप्त हो जाता है। वे अधिक उत्साह के साथ सुनहरें सूरज के सामने फिर आते हैं। दूसरे शब्दों में, वे अगली सुबह फिर पतंग उड़ाते हैं। उनकी गति और अधिक तेज हो जाती है। पृथ्वी और तेज गति से उनके बेचैन पैरों के पास आती है।

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्नः--

कविता के साथः--

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प्रश्न 1. 'सबसे तेज़ बौछारें गयीं, भादो गया' के बाद प्रकृति में जो परिवर्तन कवि ने दिखाया है, उसका वर्णन अपने शब्दों में करें।

अथवा

सबसे तेज़ बौछारों के साथ भादों के बीत जाने के बाद प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण 'पतंग' कविता के आधार पर अपने शब्दों में कीजिए। 

उत्तर:--इस कविता में कवि ने प्राकृतिक वातावरण का सुंदर वर्णन किया है। भादों माह में तेज वर्षा होती है। इसमें बौछारें पड़ती हैं। बौछारों के समाप्त होने पर शरद का समय आता है। मौसम खुल जाता है। प्रकृति में निम्नलिखित परिवर्तन दिखाई देते हैं-

(i) सवेरे का सूरज खरगोश की आँखों जैसा लाल-लाल दिखाई देता है।

(ii) शरद ऋतु के आगमन से उमस समाप्त हो जाती है। ऐसा लगता है कि शरद अपनी साइकिल को तेज गति से चलाता हुआ आ रहा है।

(iii) वातावरण साफ़ व धुला हुआ-सा लगता है।

(iv) धूप चमकीली होती है।

(v) फूलों पर तितलियाँ मँडराती दिखाई देती हैं।

प्रश्न 2. सोचकर बताएँ कि पतंग के लिए सबसे हलकी और रंगीन चीज, सबसे पतला कागज्ज, सबसे पतली कमानी जैसे विशेषणों का प्रयोग क्यों किया गया है?

उत्तर:-कवि ने पतंग के लिए सबसे हलकी और रंगीन चीज, सबसे पतला कागज, सबसे पतली कमानी जैसे विशेषणों का प्रयोग किया है। वह इसके माध्यम से पतंग की विशेषता तथा बाल-सुलभ चेष्टाओं को बताना चाहता है। बच्चे भी हलके होते हैं, उनकी कल्पनाएँ रंगीन होती हैं। वे अत्यंत कोमल व निश्छल मन के होते हैं। इसी तरह पतंगें भी रंग-बिरंगी, हल्की होती हैं। वे आकाश में दूर तक जाती हैं। इन विशेषणों के प्रयोग से कवि पाठकों का ध्यान आकर्षित करना चाहता है।

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प्रश्न 3. निम्नलिखित पंक्तियों में बिंब स्पष्ट करें :---

सबसे तेज बौछारें गयीं भादो गया

सवेरा हुआ

खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा

शरद आया पुलों को पार करते हुए

अपनी नई चमकीली साइकिल तेज चलाते हुए

घंटी बजाते हुए जोर-जोर से 

चमकीले इशारों से बुलाते हुए 

पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को 

चमकीलें इशारों से बुलाते हुए और 

आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए 

कि पतंग ऊपर उठ सके।

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उत्तर :--इस अंश में कवि ने स्थिर व गतिशील आदि दृश्य बिंबों को उकेरा है। इन्हें हम इस तरह से बता सकते हैं-

• तेज बौछारें     ---     गतिशील दृश्य बिंब।

• सवेरा हुआ       ---      स्थिर दृश्य बिंब।

• खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा--स्थिर दृश्य बिंब ।

• पुलों को पार करते हुए--गतिशील दृश्य बिंब ।
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• अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए--गतिशील  
  
  दृश्य बिंब ।

• घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से  -- श्रव्य बिंब ।

• चमकीले इशारों से बुलाते हुए  --गतिशील दृश्य बिंब ।

• आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए--स्पर्श दृश्य बिंब ।

• पतंग ऊपर उठ सके--- गतिशील दृश्य बिंब ।

उत्तर:--(ⅰ) इसका तात्पर्य है कि पतंग उड़ाते समय बच्चे ऊँची दीवारों से छतों पर कूदते हैं तो उनकी पदचापों से एक मनोरम संगीत उत्पन्न होता है। यह संगीत मृदंग की ध्वनि की तरह लगता है। साथ ही बच्चों का शोर भी चारों दिशाओं में गूँजता है।

(ii) जब पतंग सामने हो तो छतों पर दौड़ते हुए छत कठोर नहीं लगती। इसका कारण यह है कि इस समय हमारा साग ध्यान पतंग पर ही होता है। हमें कूदते हुए छत की कठोरता का अहसास नहीं होता। हम पतंग के साथ ही खुद को उड़ते हुए महसूस करते हैं।
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(iii) खतरनाक परिस्थितियों का सामना करने के बाद हम दुनिया की चुनौतियों के सामने स्वयं को अधिक सक्षम मानते हैं। हममें साहस व निडरता का भाव आ जाता है। हम भय को दूर छोड़ देते हैं।

कविता के आस-पास:--

प्रश्न 1. आसमान में रंग-बिरंगी पतंगों को देखकर आपके मन में कैसे खयाल आते हैं? लिखिए।

उत्तर:--आसमान में रंग-बिरंगी पतंगों को देखकर मेरा मन खुशी से भर जाता है। मैं सोचता हूँ कि मेरे जीवन में भी पतंगों को तरह अनगिनत रंग होने चाहिए ताकि मैं भरपूर जीवन जी सकूँ। मैं भी पतंग की तरह खुले आसमान में उड़ना चाहता हूँ। मैं भी नयी ऊँचाइयों को छूना चाहता हूँ।

प्रश्न 2. 'रोमांचित शरीर का संगीत' का जीवन के लय से क्या संबंध है?

उत्तर :--'रोमांचित शरीर का संगीत' जीवन की लय से उत्पन्न होता है। जब मनुष्य किसी कार्य में पूरी तरह लीन हो जाता है तो उसके शरीर में अद्भुत रोमांच व संगीत पैदा होता है। वह एक निश्चित दिशा में गति करने लगता है। मन के अनुकूल * कार्य करने से हमारा शरीर भी उसी लय से कार्य करता है।

प्रश्न 3. 'महज एक धागे के सहारे, पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ' उन्हें (बच्चों को) कैसे थाम लेती हैं? लिखिए। 

उत्तर:--पतंग बच्चों की कोमल भावनाओं से जुड़ी होती है। पतंग आकाश में उड़ती है, परंतु उसकी ऊँचाई का नियंत्रण बच्चों के हाथ की डोर में होता है। बच्चे पतंग की ऊँचाई पर ही ध्यान रखते हैं। वे स्वयं को भूल जाते हैं। पतंग की बढ़ती ऊँचाई से बालमन और अधिक ऊँचा उड़ने लगता है। पतंग का धागा पतंग की ऊँचाई के साथ-साथ बालमन को भी नियंत्रित करता है।
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आपका शुभचिंतक 
राजेश राष्ट्रवादी






































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